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दस दिनों तक चलने वाले गणेश उत्सव का शुभारंभ, नगर सहित विभिन्न जगहों पर विराजे गणपति

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मनेन्द्रगढ़
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद यानी कि भादो माह की शुक्ल पक्ष चतुर्थी को भगवान गणेश का जन्म हुआ था। उनके जन्मदिवस को ही गणेश चतुर्थी कहा जाता है। पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाने वाला पर्व गणेश पूजा शनिवार से प्रारंभ हो गई है। शहर के साथ आस पास के क्षेत्रों में भी गणेश चतुर्थी से गणेश उत्सव का शुभारंभ हो चुका है जिसके मद्देनजर पंडालों में व्यापक तैयारिया की गई है। क्षे़त्र में साथ ही साथ बडी श्रद्धा से अपने.अपने घरों में भी प्रथम पुज्य श्री गणेश की मुर्तियों की स्थापना कर विधिवत पूजा की जा रही है। कोयलांचल में गणेश उत्सव को लेकर उत्साह देखते ही बन रहा है। श्री गणेश बैठकी के लिए नगर सहित आस पास के कोयलांचल क्षेत्रों में पिछले करीब एक महीने से व्यापक स्तर पर तैयारिया चल रही थी।

 

युवकों की भक्त टोलियां लगातार दिन रात एक कर अपने अपने वार्डो के भव्य पूजा पण्डाल बनाने में व्यस्थ रहे। जिसे अब अंतिम रूप देकर विघ्रविनाशक श्री गणेश की स्थापना पूरे विधि विधान अनुसार किया गया। और रोज शाम की आरती में काफी संख्या में भक्तो की भीड़ यहा देखने को मिलती है। हिन्दू धर्म में भगवान गणेश का विशेष स्थान है। कोई भी पूजा, हवन या मांगलिक कार्य श्री गणेश जी के स्तुति के बिना अधूरा है। हिन्दुओं में गणेश वंदना के साथ ही किसी नए काम की शुरुआत होती है। यही वजह है कि गणेश चतुर्थी यानी कि भगवान गणेश के जन्मदिवस को देश भर में पूरे विधि.विधान और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

महारष्ट्र और मध्य प्रदेश में तो इस पर्व की छटा देखते ही बनती है, सिर्फ चतुर्थी के दिन ही नहीं बल्की भगवान गणेश का जन्म उत्सव पूरे 10 दिन यानी कि अनंत चतुर्दशी तक मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी का सिर्फ धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व ही नहीं है बल्की यह राष्ट्रीय एकता का भी प्रतीक है।् छत्रपति शिवाजी महाराज ने तो अपने शासन काल में राष्ट्रीय संस्कृति और एकता को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक रूप से गणेश पूजन शुरू किया था। लोकमान्य तिलक ने 1857 की असफल क्रांति के बाद देश को एक सूत्र में बांधने के मकसद से इस पर्व को सामाजिक और राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाए जाने की परंपरा फिर से शुरू की। 10 दिनों तक चलने वाले गणेश उत्सव ने अंग्रेजी शासन की जड़ों को हिलाने का काम बखूबी किया। गणपति की स्थापना गणेश चतुर्थी के दिन मध्यान्ह में की जाती है। मान्यता है कि गणपति का जन्म मध्यान्ह काल में हुआ था। साथ ही इस दिन चंद्रमा देखने की मनाही होती है, गणपति की स्थापना करने से पहले स्नान करने के बाद नए या साफ धुले हुए बिना कटे.फटे वस्त्र पहनने चाहिए.। इसके बाद अपने माथे पर तिलक लगाएं और पूर्व दिशा की ओर मुख कर आसन पर बैठ जाएं.।

आसन कटा.फटा नहीं होना चाहिए, साथ ही पत्थर के आसन का इस्तेमाल न करें। इसके बाद गणेश जी की प्रतिमा को किसी लकड़ी के पटरे या गेहूं, मूंग,ज्वार के ऊपर लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित करें। गणपति की प्रतिमा के दाएं.बाएं रिद्धि.सिद्धि के प्रतीक स्वरूप एक.एक सुपारी रखें, गणपति की स्थापना के बाद इस तरह पूजन करें- सबसे पहले घी का दीपक जलाएं इसके बाद पूजा का संकल्प लें फिर गणेश जी का ध्यान करने के बाद उनका आह्वन करें इसके बाद गणेश को स्नान कराएं सबसे पहले जल से,फिर पंचामृत ,दूध ,दही,घी, शहद और चीनी का मिश्रण और पुनरू शुद्ध जल से स्नान कराये। अब गणेश जी को वस्त्र चढ़ाये अगर वस्त्र नहीं हैं तो आप उन्हें एक नाड़ा भी अर्पित कर सकते हैं इसके बाद गणपति की प्रतिमा पर सिंदूर चंदन फूल और फूलों की माला अर्पित करें

अब बप्पा को मनमोहक सुगंध वाली धूप दिखा कर, दूसरा दीपक जलाकर गणपति की प्रतिमा को दिखाकर हाथ धो लें हाथ पोंछने के लिए नए कपड़े का इस्तेमाल करें अब नैवेद्य चढ़ाएं नैवेद्य में मोदक,मिठाई, गुड़ और फल शामिल हैं । इसके बाद गणपति को नारियल और दक्षिण प्रदान करें. अब अपने परिवार के साथ गणपति की आरती करें गणेश जी की आरती कपूर के साथ घी में डूबी हुई एक या तीन या इससे अधिक बत्तियां बनाकर की जाती है इसके बाद हाथों में फूल लेकर गणपति के चरणों में पुष्पांजलि अर्पित करें अब गणपति की परिक्रमा करें ध्यान रहे कि गणपति की परिक्रमा एक बार ही की जाती है। इसके बाद गणपति से किसी भी तरह की भूल-चूक के लिए माफी मांगें। पूजा के अंत में साष्टांग प्रणाम करें।

नगर सहित कोयलांचल क्षेत्रों में विभिन्न सार्वजनिक एवं निजी घरों में हिन्दुओं के प्रथम आराध्य देव भगवान गणेश की विभिन्न पंडालों में आकर्षक प्रतिमा स्थापित कर पूजन अर्चन की जा रही है। चारो ओर गणपति बप्पा मोरिया की धुन से पूरा नगर गुंजाए मान हो रही है, शास्त्रानुसार श्री गणेश की पार्थिव प्रतिमा बनाकर उसे प्राण प्रतिष्ठा कर पूजन अर्चन के पश्चात विसर्जित कर देने का आख्यान मिलता है । किन्तु भजन कीर्तन आदि आयोजनेां ओर सांस्कृतिक आयोजनेां के कारण भक्त 1,2,3,5,7,10 आदि दिनो तक पूजन अर्चन करते हुए प्रतिमा का विसर्जन करते हेै।