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मोहन सरकार ने भेल की जमीन पर बड़ा फैसला लिया, 4 हजार एकड़ जमीन लेने के लिए अलग तरह से प्रयास करेगी

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भोपाल
 मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के बीचों-बीच हजारों एकड़ जमीन खाली पड़ी है। इस पर चाहकर भी मध्यप्रदेश सरकार विकास कार्य नहीं कर पा रही है। यहां पर हजारों एकड़ भूमि खुले रूप में मौजूद है। जिस पर अवैध कब्जा हो चुका है। लेकिन अब प्रदेश सरकार ने इसे लेने के लिए नए सिरे से प्रयास शुरू कर दिया है।

दरअसल, यह भूमि भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (भेल) की है। पूर्व में यह जमीन सरकार मांग चुकी है, लेकिन भेल ने इसे देने से मना कर दिया। अब सरकार इस जमीन को भेल से लेकर उसका पुनर्विकास करने का प्लान बना रही है। मुख्य सचिव अनुराग जैन की निगरानी में यहां प्लान तैयार हो रहा है।

4000 एकड़ पर विकास कार्य का मॉडल

यह जमीन थोड़ी बहुत नहीं, बल्कि 4 हजार एकड़ है। जब तक जमीन नहीं मिल जाती, तब तक विकास मॉडल के आधार पर यहां काम किया जाएगा। ये ऐसे मॉडल होंगे, जिनमें भेल की अतिक्रमण वाली खाली पड़ी जमीनों पर भोपाल के विकास से जुड़े प्रोजेक्ट जैसे हाईराइज बिल्डिंग व औद्योगिक इकाईयों का निर्माण किया जाएगा। सीएम मोहन यादव ने कहा कि यह पहल भोपाल के विकास के साथ भेल को भी आर्थिक रूप से सशक्त बनाने की दिशा में काम करेगी।

राजस्व का होगा 50-50 बंटवारा

सरकार भेल से यह जमीन यूं ही नहीं लेने वाली। इसके बदले में जमीन का कुछ हिस्सा भेल को भी विकसित करके दिया जाएगा। यही नहीं, इस जमीन में लगने वाले उद्योग या अन्य साधनों से मिलने वाले राजस्व को भेल और शासन के बीच 50-50 फीसदी बांटे जाने का प्लान है।

क्या है भेल

करीब 62 वर्ष पहले भारत हैवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड (भेल) को भोपाल में 6000 एकड़ जमीन मिली थी। इसमें से करीब 764 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा है। करी 700 एकड़ पर निजी खेती की जा रही है। 90 एकड़ जमीन पर जंबूरी मैदान है और करीब 12 एकड़ जमीन पर अवैध रूप से अन्ना नगर बसा है। कुछ वर्ष पहले राज्य शासन ने भेल से जमीन मांगी थी, लेकिन भेल प्रशासन ने साफ-साफ मना कर दिया था।

केंद्र सरकार से ऐसे मांगेगे जमीन

दरअसल, भोपाल को मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र बनाने की दिशा में कार्य चल रहा है। लेकिन भोपाल के एक ओर वन क्षेत्र की बड़ी सीमा है, जिसे टाइगर रिजर्व के रूप में अधिसूचित किया है। यहां विकास नहीं किया जा सकता। दूसरा भोपाल झीलों की नगरी है, बड़ा तालाब रामसर साइट है। यह भोपाल की बड़ी सीमा को घेरता है। दूसरे तालाब व नदियां भी हैं, उन्हें प्रभावित नहीं किया जा सकता।

वहीं, भोपाल का बड़ा हिस्सा भेल को दी जमीन से लगा है। उक्त जमीन का बड़ा हिस्सा खाली है। भोपाल से लगे बाकी जो क्षेत्र बचे हैं, उनमें लगातार विकास हो रहा है, आबादी बस रही है। ऐसे में भेल की जमीन सरकार के लिए उपयोगी हो सकती है। यहां विकास के ऐसे कार्य किए जाए जिससे राजस्व की प्राप्ति हो सके।

खाली जमीन पर हो रहा अतिक्रमण

भेल को मिली 6 हजार एकड़ जमीन में से अभी तक 2000 एकड़ जमीन खाली पड़ी है। इस खाली पड़ी जमीन पर लगातार अतिक्रमण हो रहा है। भेल की 700 अधिक अतिक्रमण वाली जमीन पर निजी लोग खेती कर रहे हैं। वहीं, यहां के खाली पड़े जर्जर आवासों का लोग अवैध तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं।