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बिहार में फिलीस्तीन का झंडा और नारे: ओवैसी के प्रभाव की झलक

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बिहार में इन दिनों फिलीस्तीन का झंडा बड़े पैमाने पर लहराते हुए देखा जा सकता है। यह स्थिति अनोखी और चिंताजनक है, क्योंकि किसी और देश में दूसरे देश का झंडा इस तरह बुलंद होकर फहराया जाए तो तत्काल कड़ी सजा मिल जाएगी। लेकिन बिहार में मुहर्रम के अवसर पर और अन्य मौकों पर भी फिलीस्तीन का झंडा लहराते हुए उसके जिंदाबाद के नारे लगते रहे हैं।

फिलीस्तीन का झंडा और जिंदाबाद के नारे

मुहर्रम के मुख्य जुलूस के दौरान और उसके पहले व बाद में भी, फिलीस्तीन का झंडा लहराते हुए लोग ‘फिलीस्तीन जिंदाबाद’ के नारे लगा रहे थे। कुछ लोग ‘फिलीस्तीन बचाओ’ का नारा दे रहे हैं, जबकि ज्यादातर लोग बिना सोचे-समझे जिंदाबाद के नारे लगा रहे हैं। यह पहली बार है जब बिहार में इस तरह की स्थिति उत्पन्न हुई है।

ओवैसी का प्रभाव

इस पूरे प्रकरण का सूत्रधार ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी को माना जा रहा है। लोकसभा चुनाव के बाद नई संसद में शपथ ग्रहण के दौरान ओवैसी ने ‘जय फिलीस्तीन’ का नारा दिया था। इस घटना के बाद से बिहार में फिलीस्तीन के प्रति समर्थन बढ़ता दिख रहा है।

राजनीतिक परिप्रेक्ष्य

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में ओवैसी की पार्टी के पांच विधायक चुने गए थे, लेकिन उनमें से चार राजद में चले गए। लोकसभा चुनाव 2024 में AIMIM का खाता नहीं खुला, फिर भी ओवैसी का प्रभाव अब भी दिख रहा है। बिहार में फिलीस्तीन के जयकारे और झंडे लहराने की घटनाओं को ओवैसी के समर्थन के रूप में देखा जा रहा है।

सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रिया

बिहार में इस घटना ने सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित किया है। कुछ लोग इसे समर्थन और समर्पण के रूप में देख रहे हैं, जबकि अन्य इसे राजनीतिक एजेंडा मान रहे हैं। इस स्थिति ने बिहार में एक नई राजनीतिक बहस को जन्म दिया है, जिसमें ओवैसी और उनकी पार्टी का प्रभाव केंद्र में है।

निष्कर्ष

बिहार में फिलीस्तीन का झंडा लहराने और जिंदाबाद के नारे लगाने की घटनाएं ओवैसी के प्रभाव को दर्शाती हैं। यह स्थिति सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। बिहार की राजनीति में यह एक नया मोड़ है, जो आगे की राजनीति को प्रभावित कर सकता है।

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