20 साल बाद बंद हुआ भारत का एयरबेस: क्या रूस-चीन की साजिश थी?

Oct 30, 2025 - 08:44
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20 साल बाद बंद हुआ भारत का एयरबेस: क्या रूस-चीन की साजिश थी?

नई दिल्ली

भारत ने ताजिकिस्तान में स्थित रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण आयनी एयरबेस से अपनी सैन्य मौजूदगी पूरी तरह समाप्त कर ली है। यह कदम दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय समझौते की समाप्ति के बाद उठाया गया है। मामले से वाकिफ लोगों ने बुधवार को यह जानकारी दी। यह वही एयरबेस है जहां भारत ने लगभग दो दशक पहले, अफगानिस्तान में तालिबान विरोधी नॉर्दर्न अलायंस का समर्थन करते हुए पहली बार अपने सैनिक और वायुसेना कर्मियों को तैनात किया था।

सूत्रों के अनुसार, भारत और ताजिकिस्तान के बीच इस एयरबेस के विकास और संयुक्त संचालन के लिए किया गया द्विपक्षीय समझौता लगभग चार साल पहले समाप्त हो गया था, और इसे आगे नहीं बढ़ाया गया। इसी के बाद से धीरे-धीरे भारतीय कर्मियों की वापसी शुरू हुई, जो 2022 तक ही पूरी हो गई थी। यह एयरबेस राजधानी दुशांबे से लगभग 10 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है।

100 मिलियन डॉलर खर्च कर किया था एयरबेस का विकास

पूर्व सोवियत काल में बने इस एयरबेस को भारत ने 2000 के दशक में विकसित और आधुनिक बनाया था। सूत्रों के अनुसार, भारत ने इस पर करीब 100 मिलियन डॉलर (लगभग 830 करोड़ रुपये) खर्च किए थे। इन सुधारों में रनवे को मजबूत और लंबा करना शामिल था ताकि कॉम्बैट जेट्स और भारी परिवहन विमानों की लैंडिंग हो सके। इसके अलावा, फ्यूल डिपो, हैंगर, एयर ट्रैफिक कंट्रोल टॉवर और हार्डनड शेल्टर जैसी सुविधाएं भी विकसित की गई थीं।

तैनात थे भारतीय वायुसेना और थलसेना के कर्मी

2014 के बाद कुछ समय के लिए भारत ने अपने Su-30MKI लड़ाकू विमानों को भी आयनी एयरबेस पर तैनात किया था। उस समय करीब 200 तक भारतीय सैन्य कर्मी यहां तैनात रहते थे जिनमें वायुसेना और थलसेना दोनों के अधिकारी शामिल थे।

नॉर्दर्न अलायंस को मिली थी मदद

भारत की इस मौजूदगी का मूल उद्देश्य था तालिबान विरोधी नॉर्दर्न अलायंस को रसद और उपकरणों की आपूर्ति में तेजी लाना, साथ ही हवाई समर्थन और निगरानी मिशन चलाना। इसके साथ ही, भारत ने ताजिकिस्तान के फरखोर में एक सैन्य अस्पताल भी स्थापित किया था, जहां घायल नॉर्दर्न अलायंस के लड़ाकों का इलाज किया जाता था। इसी अस्पताल में 9/11 हमलों से दो दिन पहले नॉर्दर्न अलायंस के प्रमुख नेता अहमद शाह मसूद को घातक हमले में घायल होने के बाद लाया गया था, जहां उनका निधन हो गया था।

रणनीतिक दृष्टि से अहम थी यह मौजूदगी

2001 में तालिबान शासन के पतन और काबुल में नई सरकार बनने के बाद भी भारत ने आयनी एयरबेस पर अपनी मौजूदगी बनाए रखी। यह कदम मध्य एशिया में भारत के प्रभाव को बढ़ाने और पाकिस्तान पर सामरिक दबाव बनाए रखने की रणनीति का हिस्सा था, क्योंकि यह एयरबेस अफगानिस्तान के वाखान कॉरिडोर से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह वही संकीर्ण पट्टी है जो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) से सटी हुई है।

अफगानिस्तान से नागरिकों की निकासी में हुई थी मदद

2021 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर नियंत्रण हासिल कर लिया था, तब भारत ने आयनी एयरबेस का उपयोग अपने नागरिकों और राजनयिकों को सुरक्षित निकालने के लिए किया था। उस दौरान भारतीय सेना और वायुसेना के साथ-साथ नागरिक विमानों का भी इस्तेमाल किया गया था।

अब पूरी तरह समाप्त हुई भारतीय उपस्थिति

सूत्रों ने बताया कि भारत की सारी सैन्य और तकनीकी संपत्तियां, साथ ही वहां तैनात कर्मी, 2022 तक वापस बुला लिए गए थे। समझौता समाप्त होने के बाद आयनी एयरबेस का संचालन अब पूरी तरह ताजिकिस्तान सरकार के अधीन है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह कदम भारत की मध्य एशिया नीति में एक नए अध्याय की शुरुआत है, जहां नई परिस्थितियों के तहत भारत को कूटनीतिक और आर्थिक माध्यमों से अपनी मौजूदगी मजबूत करनी होगी।

भारत का पहला विदेशी एयरबेस: एक रणनीतिक सपना

साल 2002। अफगानिस्तान में तालिबान का साया मंडरा रहा था। भारत ने ताजिकिस्तान के साथ सैन्य सहयोग बढ़ाया। आयनी एयरबेस राजधानी दुशांबे से महज 10 किलोमीटर दूर है। यह सोवियत युग का एक पुराना हवाई अड्डा था। भारत ने इसे नया जीवन दिया। लगभग 70-80 मिलियन डॉलर (करीब 500 करोड़ रुपये) खर्च करके रनवे को 3,200 मीटर लंबा बनाया, हैंगर बनवाए, ईंधन डिपो स्थापित किए। माना जाता है कि यह भारत का पहला विदेशी एयरबेस था- कोई स्थायी फाइटर स्क्वाड्रन नहीं, लेकिन दो-तीन Mi-17 हेलीकॉप्टर ताजिकिस्तान को गिफ्ट में दिए गए थे, जिन्हें भारतीय वायुसेना (IAF) के पायलट उड़ा रहे थे।

रणनीतिक महत्व? आयनी अफगानिस्तान के वाखान कॉरिडोर से सटा है, जो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) से महज 20 किलोमीटर दूर है। यानी अगर पीओके पर पाक का कब्जा नहीं होता तो ताजिकिस्तान हमारा पड़ोसी देश होता। आयनी एयरबेस से भारतीय Su-30 MKI जैसे फाइटर जेट्स पेशावर या इस्लामाबाद तक को निशाना बना सकते थे। चीन के शिनजियांग प्रांत से भी सटी सीमा इसे दुश्मनों के लिए दोहरी चुनौती बनाती।

2001 में तालिबान के अफगानिस्तान कब्जे के दौरान भारत ने इसी बेस से अपने नागरिकों को निकाला था। यह न सिर्फ ह्यूमैनिटेरियन मिशनों के लिए था, बल्कि पाकिस्तान-चीन गठजोड़ को नजरअंदाज करने का तरीका। लेकिन शुरुआत से ही इस पर रूस की छाया थी। ताजिकिस्तान रूस-नीत कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (CSTO) का सदस्य है। मानाजाता है कि भारत ने रूस की मंजूरी से ही यहां कदम रखा। 2011 में ताजिकिस्तान ने रूस को ही बेस सौंपने की बात कही। फिर भी, भारत ने 2021 तक लीज बढ़ाने की कोशिश की- यहां तक कि सुखोई (Su-30) जेट्स भी तैनात किए थे।
ताजिकिस्तान की रणनीतिक स्थिति

ताजिकिस्तान कभी सोवियत संघ का हिस्सा था। वह अफगानिस्तान, चीन, किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान की सीमाओं से जुड़ा है। यह क्षेत्र रूस, चीन और भारत जैसे तीनों परमाणु शक्तियों के लिए प्रभाव क्षेत्र का केंद्र बना हुआ है। भारत की वापसी यह संकेत देती है कि मध्य एशिया धीरे-धीरे रूस और चीन के प्रभाव क्षेत्र में और गहराई से समाहित हो रहा है।

बता दें कि रूस-नेतृत्व वाले CSTO में रूस, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, आर्मेनिया और बेलारूस जैसे देश भी शामिल हैं। इसके अलावा, ताजिकिस्तान को चीन, यूरोपीय संघ, भारत, ईरान और अमेरिका से भी सीमा सुरक्षा और आतंकवाद-रोधी परियोजनाओं के लिए आर्थिक सहायता मिलती है। ताजिकिस्तान में रूस का सबसे बड़ा विदेशी सैन्य ठिकाना भी स्थित है, जबकि चीन भी वहां सुरक्षा निवेश बढ़ा रहा है।
दबाव की शुरुआत: रूस का 'दोस्ताना' धोखा

द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार, ताजिकिस्तान ने 2021 में भारत को सूचित किया था कि आयनी एयरबेस की लीज अब आगे नहीं बढ़ाई जाएगी। इसके बाद भारत ने 2022 में धीरे-धीरे अपनी सेनाएं और उपकरण हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी। लीज न बढ़ाने के पीछे आधिकारिक कारण 'गैर-क्षेत्रीय सैन्य कर्मियों' की मौजूदगी बताया गया। लेकिन असलियत कुछ और थी। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, रूस और चीन का दबाव असली वजह थी। दरअसल रूस, भारत का 'ऑल वेदर फ्रेंड' यानी सदाबहार दोस्त है। वह CSTO के जरिए ताजिकिस्तान को भी कंट्रोल करता है। रूस को चिंता थी कि भारत का झुकाव पश्चिमी देशों की ओर बढ़ रहा है और इससे मध्य एशिया में 'बाहरी हस्तक्षेप' बढ़ेगा। 2007 में ही रूस ने भारत को आयनी से हटाने की कोशिश की थी, जब न्यूक्लियर डील के कारण भारत-पश्चिम संबंध मजबूत हो रहे थे।

लोग इसे 'दोस्ताना धोखा' बता रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि रूस ने पहले फरखोर एयरबेस पर भी ऐसा ही किया जहां भारत ने करोड़ों खर्च किए, फिर रूस ने ताजिकिस्तान को मजबूर कर हमें हटाया और खुद तैनात हो गया। एक पुरानी घटना याद दिलाती है कि रूस का 'स्फीयर ऑफ इन्फ्लुएंस' मध्य एशिया में अटल है। भारत के S-400 डील के बावजूद, रूस ने क्षेत्रीय संतुलन को प्राथमिकता दी।
चीन का छिपा हाथ: BRI का सामरिक विस्तार

अब चीन की बात करते हैं। चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) ताजिकिस्तान को कर्ज के जाल में फंसा चुकी है। 2019 में सैटेलाइट इमेजेस से पता चला कि चीन ने ताजिकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर सैन्य बेस बनाया- भारत के आयनी बेस से महज कुछ किलोमीटर दूर। चीन को डर था कि आयनी बेस से भारत उसके शिनजियांग में उइगर विद्रोहियों को सपोर्ट कर सकता है। साथ ही, PoK के पास भारत की मौजूदगी CPEC (चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर) को खतरा साबित हो सकती थी। रूस-चीन की पार्टनरशिप यहां काम आई। दोनों ने CSTO और शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) के जरिए ताजिकिस्तान को अपने पाले में लिया।
कूटनीतिक दबाव या गुप्त समझौता?

2022 में भारत की वापसी चुपचाप हो गई। हेलीकॉप्टर, इंजीनियर्स, ट्रेनिंग टीम सब हटा लिए गए। लेकिन खबर 2025 में लीक हुई। क्यों इतनी देरी? रूस को यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी प्रतिबंधों से जूझना पड़ रहा। भारत को 'पश्चिमी गुट' में जाते देख, रूस ने CSTO में अपनी पकड़ मजबूत की। 2011 में ही रूस ने आयनी पर 'जॉइंट यूज' का दावा किया, लेकिन ताजिकिस्तान ने इनकार कर दिया। अब ऐसा लगता है कि रूस ने खुद बेस पर कब्जा जमा लिया है।

भारत की ताजिकिस्तान से सैन्य वापसी का मतलब है कि अब मध्य एशिया में रूस और चीन का दबदबा और मजबूत होगा। इससे भारत की सैन्य पहुंच और निगरानी क्षमता सीमित हो जाएगी। हालांकि, विशेषज्ञ मानते हैं कि नई दिल्ली अब आर्थिक, ऊर्जा और राजनयिक सहयोग के जरिये इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाए रखने की कोशिश करेगी।

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