ब्रिजिट मैक्रों पर सनसनीखेज दावा: 'वो जन्म से पुरुष थीं' – महिलाओं का अजीब विवाद

फ्रांस
फ्रांस की प्रथम महिला ब्रिजिट मैक्रों एक बार फिर सुर्खियों में हैं — लेकिन इस बार वजह फैशन या कोई भाषण नहीं, बल्कि उनके खिलाफ फैलाई गई एक अफवाह है। इस अफवाह में उनकी जेंडर आइडेंटिटी को लेकर झूठे दावे किए गए हैं, जिसे लेकर अब उन्होंने कानूनी कार्रवाई शुरू की है। यह मामला अब सिर्फ फ्रांस में ही नहीं, बल्कि अमेरिका और रूस तक चर्चा का विषय बन गया है।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला पहली बार दिसंबर 2021 में तब सामने आया जब अमंडाइन रॉय नाम की यूट्यूबर ने एक 4 घंटे लंबा इंटरव्यू अपलोड किया, जिसमें पत्रकार नताशा रे ने दावा किया कि ब्रिजिट मैक्रों असल में पहले एक पुरुष थीं – जीन-मिशेल ट्रोग्नेक्स, और बाद में उन्होंने लिंग परिवर्तन कर इमैनुएल मैक्रों से शादी की। रे ने यह भी कहा कि उन्होंने इस 'खुलासे' के लिए तीन साल तक रिसर्च की और उनके पास कई सबूत हैं, हालांकि किसी भी दावे की स्वतंत्र पुष्टि कभी नहीं हो सकी।
कानूनी मोर्चे पर ब्रिजिट की कार्रवाई
ब्रिजिट ने इन दोनों महिलाओं पर मानहानि का मुकदमा दायर किया। निचली अदालत ने फैसला सुनाते हुए दोनों पर €13,000 (लगभग ₹11.7 लाख) का जुर्माना लगाया। €8,000 ब्रिजिट को, €5,000 उनके भाई को (जिनका नाम भी घसीटा गया था)। लेकिन पेरिस की अपीली अदालत ने यह सजा रद्द कर दी। अब ब्रिजिट और उनके भाई ने फ्रांस की सर्वोच्च अदालत में अपील की है।
मामला अब इंटरनेशनल लेवल पर
यह सिर्फ फ्रांस तक सीमित नहीं रहा। अमेरिका में ट्रंप समर्थक पत्रकारों – कैंडेस ओवेन्स और टकर कार्लसन ने इसे जोरशोर से उठाया: ओवेन्स ने इसे मानव इतिहास का सबसे बड़ा राजनीतिक घोटाला बताया। उन्होंने कहा कि ब्रिजिट और उनके भाई असल में एक ही व्यक्ति हैं। ओवेन्स ने Becoming Brigitte नाम से वीडियो सीरीज शुरू की और दावा किया कि वह अपनी प्रोफेशनल प्रतिष्ठा इस थ्योरी पर दांव पर लगाने को तैयार हैं।
जनवरी 2025 में ब्रिजिट की ओर से ओवेन्स को कानूनी नोटिस भेजा गया, जिसमें लिखा था कि किसी महिला को अपनी पहचान साबित करने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए। फिर भी ओवेन्स पीछे नहीं हटीं और फरवरी में उन्होंने फ्रेंच पत्रकार जेवियर पौसार्ड के साथ इंटरव्यू किया, जिन्होंने इसी विषय पर एक किताब भी लिखी--- जो अब अमेजन पर बेस्टसेलर बन चुकी है।
रूस तक पहुंचा विवाद
पत्रकार नताशा रे ने 2024 में रूस में राजनीतिक शरण मांगी। उनका दावा है कि फ्रांस में उन्हें सरकार द्वारा सताया गया और बोलने की आज़ादी छीनी जा रही है। उन्होंने फ्रांस सरकार की तुलना अमेरिका से की और खुद को एडवर्ड स्नोडन की तरह बताया, जो अमेरिका की खुफिया जानकारी लीक करने के बाद रूस में शरण लिए हुए हैं। ब्रिजिट और इमैनुएल मैक्रों की उम्र में अंतर पहले से ही आलोचना का विषय रहा है (मैक्रों 46 और ब्रिजिट 72)। इस विवाद ने फ्रांसीसी राजनीति की गरिमा और राष्ट्रपति पद की प्रतिष्ठा पर सवाल खड़े कर दिए। कई मानवाधिकार संगठनों ने इसे महिलाओं और ट्रांसजेंडर समुदाय के खिलाफ साइबरबुलिंग और डिजिटल उत्पीड़न का केस बताया है।
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