पंजाब में बाढ़ का कहर: 1988 जैसी तबाही की लौट आई यादें

Sep 2, 2025 - 14:14
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पंजाब में बाढ़ का कहर: 1988 जैसी तबाही की लौट आई यादें

पंजाब 
पंजाब में हाल ही में आई बाढ़ ने 1988 की भयंकर बाढ़ की यादें फिर से ताजा कर दी हैं। उस वक्त सतलुज, व्यास और रावी नदियाँ बहुत ज्यादा बढ़ गई थीं, जिससे 500 से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा बैठे थे। आज भी बाढ़ से कई जिले बहुत प्रभावित हुए हैं। खासकर गुरदासपुर, पठानकोट, होशियारपुर, कपूरथला, तरनतारन, फिरोजपुर, फाजिल्का, जालंधर और रूपनगर जैसे जिले बाढ़ से सबसे ज्यादा परेशान हैं। यहाँ के लोग अपनी जिंदगी फिर से सही करने के लिए बड़ी मेहनत कर रहे हैं।

बाढ़ की वजह सिर्फ इंसान नहीं
पंजाब में बाढ़ सिर्फ बारिश और नदियों के बढ़ने की वजह से नहीं आती। इंसानों की कई गलतियों की वजह से भी बाढ़ बढ़ती है। जैसे नालों और नहरों की साफ-सफाई न होना, नदियों के रास्ते बंद हो जाना, कमजोर और टूटे हुए बांध, हरियाली की कमी, अवैध खनन और जंगलों की कटाई। साथ ही, नदी किनारे बिना अनुमति के घर और अन्य निर्माण भी बाढ़ की समस्या बढ़ाते हैं। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन की वजह से बारिश का तरीका बदल गया है और अब बारिश ज्यादा और अनियमित होती है, जिससे बाढ़ की स्थिति खराब हो रही है। नदियों में गाद जमा होने से पानी सही तरह से नहीं बह पाता क्योंकि सरकारें सालों से नदियों से गाद निकालने में कामयाब नहीं हो पाईं।

 1988 की बाढ़ ने पंजाब को कर दिया था बर्बाद
साल 1988 की बाढ़ पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के लिए बहुत बड़ी तबाही लेकर आई थी। इस बाढ़ में उत्तर भारत में 1,400 से ज्यादा लोग मारे गए, जिनमें से 383 सिर्फ पंजाब में थे। उस साल मार्च से लगातार बारिश हो रही थी, लेकिन सितंबर में सतलुज, रावी और व्यास नदियाँ बहुत ज्यादा बढ़ गई थीं। 11 मार्च को गुरदासपुर में रावी नदी अचानक उफान पर आई, जिससे 40 गाँव पानी में डूब गए। जुलाई में सतलुज और रावी नदियों के पानी ने कई जिलों को पूरी तरह डुबो दिया। सितंबर के आखिरी दिनों में भाखड़ा और पौंग बाँधों के दरवाज़े खोलने से बाढ़ और भी बढ़ गई।

1993 की बाढ़ से भी मची थी भारी तबाही
साल 1988 के पांच साल बाद, 1993 में भी पंजाब में बड़ी बाढ़ आई। इस बार करीब 300 लोग मारे गए और 6,200 मवेशी पानी में डूब गए। अमृतसर, गुरदासपुर, लुधियाना, पटियाला, होशियारपुर और संगरूर जैसे इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर के अध्ययन से पता चला कि 1988 की बाढ़ नदियों के बहुत बढ़ जाने की वजह से आई थी, लेकिन 1993 की बाढ़ नहरों और तटबंधों में दरारें आने की वजह से ज्यादा नुकसान पहुंचाई।

क्यों बढ़ती जा रही है तबाही?
जानकारी से पता चलता है कि पंजाब में नदियों के किनारे बने तटबंध और बांध सही तरीके से रखरखाव नहीं होते। नहरों की सफाई भी ठीक से नहीं की जाती, जिससे पानी का बहाव ठीक से नहीं हो पाता। जल निकासी की व्यवस्था कमजोर है और प्राकृतिक जलमार्ग अवरुद्ध हो गए हैं। नहरों, रेलवे ट्रैक, सड़कों और खेती के कारण पानी का प्राकृतिक रास्ता बाधित हो गया है। साथ ही, बाढ़ वाले इलाकों में बिना अनुमति के बन रहे घर और कमजोर बांधों की वजह से बाढ़ को नियंत्रित करना मुश्किल हो गया है।

साल 2023 की बाढ़ और जलवायु परिवर्तन का असर
एक अध्ययन के मुताबिक साल 2023 की बाढ़ जलवायु परिवर्तन के कारण आई असामान्य और भारी बारिश की वजह से हुई थी। हिमाचल प्रदेश में 7 से 11 जुलाई 2023 तक सामान्य से 436% अधिक बारिश हुई जिससे ब्यास, घग्गर और सतलुज नदियाँ पंजाब के निचले इलाकों में घुस गईं। लगभग 2.21 लाख हेक्टेयर फसल क्षेत्र बाढ़ की चपेट में आ गया, जिसमें खासकर धान की फसल बुरी तरह प्रभावित हुई।

सरकारें क्यों रही नाकाम?
एक प्रोफेसर के अनुसार पंजाब में बाढ़ प्रबंधन के लिए मास्टर प्लान होने के बावजूद बाढ़ का प्रभाव कम करने में असफल रहे हैं। तटबंधों का कमजोर होना, नदियों के किनारे अवैध अतिक्रमण, और वित्तीय व राजनीतिक कमी ने स्थिति को खराब कर दिया है। साल 1988 से 2010 तक के आंकड़े बताते हैं कि सहायक नदियों की सफाई न होना, तटबंधों का टूटना, नहरों में कट लगाना और जल निकासी प्रणाली की कमी प्रमुख कारण रहे हैं।

 

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