CSE की चेतावनी अगर समय रहते प्रदूषण पर कार्रवाई नहीं की गई, तो यह स्वास्थ्य और खेती पर गहरा असर डालेगा

Jul 17, 2025 - 03:44
 0  6
CSE की चेतावनी अगर समय रहते प्रदूषण पर कार्रवाई नहीं की गई, तो यह स्वास्थ्य और खेती पर गहरा असर डालेगा

नई दिल्ली

भारत के बड़े शहरों जैसे कोलकाता, बेंगलुरु, मुंबई, हैदराबाद और चेन्नई में इस गर्मी (2025) में जमीन के स्तर पर ओजोन प्रदूषण ने खूब सिर उठाया है. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की नई रिपोर्ट के मुताबिक, इन शहरों में ओजोन का स्तर कई दिनों तक 8 घंटे के मानक से ज्यादा रहा. यह प्रदूषण इतना खतरनाक है कि यह लोगों के स्वास्थ्य और खेती पर बुरा असर डाल रहा है. इस समस्या को समझते हैं और जानते हैं कि क्या करना जरूरी है. 

क्या है ओजोन प्रदूषण?

ओजोन एक गैस है जो तीन ऑक्सीजन अणुओं से बनती है. ऊंचे आसमान में यह हमें सूरज की हानिकारक किरणों से बचाती है, लेकिन जमीन के पास यह प्रदूषण बन जाता है. यह सीधे किसी स्रोत से नहीं निकलता, बल्कि वाहनों, उद्योगों और बिजलीघरों से निकलने वाली नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOCs) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) के सूरज की रोशनी में रासायनिक प्रतिक्रिया से बनता है. यह गैस बहुत प्रतिक्रियाशील होती है. हवा में लंबी दूरी तक फैल सकती है, जिससे यह शहरों से लेकर गांवों तक को प्रभावित करती है.

शहरों में ओजोन का हाल

CSE की रिपोर्ट के मुताबिक, इस गर्मी (मार्च-मई 2025) में कई शहरों में ओजोन का स्तर खतरनाक स्तर पर पहुंच गया. दिल्ली की रिपोर्ट पहले ही जारी हो चुकी है, इसलिए इस अध्ययन में उसे शामिल नहीं किया गया. आइए, बाकी शहरों की स्थिति देखें...

    बेंगलुरु: इस गर्मी में 92 दिनों में से 45 दिन ओजोन का स्तर मानक से ज्यादा रहा, जो पिछले साल की तुलना में 29% की बड़ी बढ़ोतरी है. होमबेगोड़ा नगर सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र रहा.

    मुंबई: 92 दिनों में 32 दिन ओजोन स्तर बढ़ा, जो पिछले साल की तुलना में 42% कम है. चकाला सबसे प्रभावित इलाका रहा.

    कोलकाता: 22 दिन ओजोन स्तर बढ़ा, जो पिछले साल की तुलना में 45% कम है. रवींद्र सरोवर और जादवपुर हॉटस्पॉट बने.

    हैदराबाद: 20 दिन ओजोन स्तर बढ़ा, जो पिछले साल की तुलना में 55% कम है. बोल्लारम सबसे ज्यादा प्रभावित रहा.

    चेन्नई: 15 दिन ओजोन स्तर बढ़ा, जो पिछले साल शून्य था. आलंदुर सबसे प्रभावित क्षेत्र रहा.

इन शहरों में ओजोन का स्तर सिर्फ गर्मियों में नहीं,बल्कि सर्दियों और अन्य मौसमों में भी बढ़ रहा है, खासकर गर्म जलवायु वाले इलाकों में.

ओजोन के हॉटस्पॉट और असर

हर शहर में कुछ खास इलाके हैं जहां ओजोन का स्तर सबसे ज्यादा बढ़ता है. इन हॉटस्पॉट्स में प्रदूषण का असर और गंभीर होता है. ओजोन सांस की नली को नुकसान पहुंचाता है. अस्थमा और दमा जैसी बीमारियों को बढ़ाता है. बच्चों, बुजुर्गों व सांस की बीमारी वालों के लिए खतरनाक है. यह फसलों को भी नुकसान पहुंचाता है, जिससे खाद्य सुरक्षा पर असर पड़ता है.

क्यों बढ़ रहा ओजोन प्रदूषण?

ओजोन का बढ़ना मौसम और प्रदूषण स्रोतों पर निर्भर करता है. गर्मी और सूरज की रोशनी इसकी रासायनिक प्रतिक्रिया को तेज करती है. वाहन, उद्योग, कचरा जलाना और ठोस ईंधन का इस्तेमाल इसके मुख्य कारण हैं. दिलचस्प बात यह है कि जहां नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) ज्यादा होता है, वहां ओजोन कम बनता है, लेकिन साफ इलाकों में यह जमा हो जाता है .

समाधान क्या हो?

CSE की अनुमिता रॉयचौधरी कहती हैं कि अगर इसे नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह गंभीर स्वास्थ्य संकट बन सकता है.इसके लिए जरूरी कदम हैं...

    सख्त कदम: वाहनों, उद्योगों और कचरा जलाने से निकलने वाली गैसों को कम करना होगा. शून्य उत्सर्जन वाहन और साफ ईंधन को बढ़ावा देना जरूरी है.

    निगरानी बढ़ाएं: ओजोन के स्तर को मापने के लिए और स्टेशन लगाने चाहिए, ताकि हॉटस्पॉट्स की पहचान हो सके.

    क्षेत्रीय योजना: ओजोन एक क्षेत्रीय प्रदूषण है, इसलिए स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर मिलकर काम करना होगा.

    जागरूकता: लोगों को इस प्रदूषण के बारे में बताना और साफ हवा के लिए कदम उठाने के लिए प्रेरित करना जरूरी है.

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि वर्तमान में, अपर्याप्त निगरानी, सीमित आँकड़े और अप्रभावी प्रवृत्ति विश्लेषण विधियों ने इस बढ़ते जन स्वास्थ्य जोखिम को समझने में बाधा डाली है। जमीनी स्तर पर ओज़ोन की जटिल रासायनिक संरचना इसे एक ऐसा प्रदूषक बनाती है जिसका पता लगाना और उसे कम करना मुश्किल है।

ओज़ोन की अत्यधिक विषाक्त प्रकृति के कारण, राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक केवल अल्पकालिक जोखिम (एक घंटे और आठ घंटे के औसत) के लिए निर्धारित किया गया है, और अनुपालन इन मानकों से अधिक दिनों की संख्या के आधार पर मापा जाता है। शोधकर्ताओं ने रेखांकित किया कि इसके लिए शीघ्र कार्रवाई आवश्यक है।

इस पत्र में कहा गया है कि वाहनों, उद्योगों और अन्य स्रोतों से निकलने वाले नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन को रोकने के लिए कड़े नियमों की आवश्यकता है। इसमें भारत में वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला गया है। इसमें कहा गया है, "कार्ययोजना के सह-लाभों को अधिकतम करने के लिए कण प्रदूषण, ओज़ोन और NOx जैसी इसकी पूर्ववर्ती गैसों के संयुक्त नियंत्रण हेतु कार्यनीति को तत्काल परिष्कृत किया जाना चाहिए।"

 

What's Your Reaction?

Like Like 0
Dislike Dislike 0
Love Love 0
Funny Funny 0
Angry Angry 0
Sad Sad 0
Wow Wow 0