नालंदा में नीतीश के ‘श्रवण’ की आठवीं जीत की जंग, हरिनारायण की दसवीं बार वापसी की कोशिश
पटना
बिहार में प्रथम चरण में छह नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव में नालंदा जिले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद करीबी माने जाने वाले मंत्री श्रवण कुमार आठवीं बार जबकि पूर्व मंत्री हरिनारायण सिंह दसवीं बार जीत का सेहरा बांधने के लिये चुनावी रण में उतरे हैं। विश्व के प्राचीनतम नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेषों को अपने आंचल में समेटे नालंदा जिले में होने वाले विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ,महागठबंधन और क्षेत्रीय पार्टियों के प्रत्याशियों का चुनाव प्रचार चरम पर है।
नालंदा जिले में सात विधानसभा क्षेत्र नालंदा,हरनौत, बिहारशरीफ, राजगीर (सुरक्षित),अस्थावां, हिलसा और इस्लामपुर है। यहां पर राजग का पलड़ा भारी है। इनमें पांच सीटें नालंदा,हरनौत,राजगीर (सुरक्षित) ,अस्थावां और हिलसा पर जनता दल यूनाईटेड (जदयू) , बिहारशरीफ में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और इस्लामपुर में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का कब्जा है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में सभी की नजरें टिकी हुयी है।
नालंदा विधानसभा क्षेत्र से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद करीबी माने जाने वाले जदयू के विधायक और मंत्री श्रवण कुमार की प्रतिष्ठा दाव पर लगी है। सियासी पिच पर सात बार जीत दर्ज कर चुके श्रवण कुमार आठवीं बार अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। महागबंधन की ओर से कांग्रेस ने कौशलेंद्र कुमार को उम्मीदवार बनाया है। दो दशक से नालंदा सीट पर श्रवण कुमार का वर्चस्व बरकरार है।
जदयू के श्रवण कुमार इस सीट से वर्ष 1995, 2000, फरवरी 2005,अक्टूबर 2005, वर्ष 2010, वर्ष 2015 और वर्ष 2020 में निर्वाचित हो चुके हैं। वर्ष 2020 के चुनाव में जदयू के श्री कुमार ने जनतांत्रिक विकास पार्टी के उम्मीदवार कौशलेंद्र कुमार को मात दी थी। कांग्रेस के गुंजन पटेल तीसरे नंबर पर रहे थे।नालंदा से 10 प्रत्याशी मैदान में हैं।
हरनौत विधानसभा क्षेत्र से जदयू ने नौ बार विधायकी का दम दिखा चुके पूर्व मंत्री एवं वर्तमान विधायक हरिनारायण सिंह को चुनावी मैदान में उतारा है। उनका मुकाबला कांग्रेस के अरूण कुमार से है। जदयू के श्री सिंह इसके पूर्व चंडी विधानसभा से वर्ष 1977, 1983 उप चुनाव,1990, 2000, फरवरी एवं अक्टूबर 2005 और इसके बाद वर्ष 2010 ,वर्ष 2015 और 2020 में हरनौत से विधानसभा से निर्वाचित हो चुके हैं।
हरनौत विधानसभा सीट ,नीतीश कुमार का गृह क्षेत्र भी है, उनका पैतृक गांव कल्याण बिगहा इसी विधानसभा क्षेत्र में स्थित है।इस सीट से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चार बार चुनाव लड़ चुके हैं। वह दो बार 1977 और 1980 में हार गए जबकि 1985 और 1995 के चुनाव में वह विजयी हुए। हरनौत सीट को जदयू का अभेद किला माना जाता है। वर्ष 2005 से लेकर अबतक हुए चुनावों में यहां कभी नीतीश के विरोधियों की दाल नहीं गली है।
वर्ष 2020 के चुनाव में जदयू के हरिनारायण सिंह ने लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) उम्मीदवार ममता देवी को शिकस्त दी थी। कांग्रेस के कुंदन कुमार तीसरे नंबर पर रहे थे।जदयू के हरिनारायण सिंह नौ बार विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं। यदि वह इस बार का चुनाव भी जीतते हैं तो सर्वाधिक बार विधानसभा पहुंचने वाले विधायक बन जाएंगे। अब तक दस बार बिहार विधानसभा का चुनाव कोई नहीं जीत सका है। नौ बार विधानसभा का चुनाव जीतने का रिकॉर्ड तीन लोगों के नाम हैं। इनमें हरिनारायण सिंह, सदानंद सिंह और रमई राम शामिल हैं। सदानंद सिंह और रमई राम दिवंगत हो चुके हैं। हरनौत में 11 उम्मीदवार चुनावी अखाड़े में उतरे हैं।
सिक्सर लगाने को बेताब डॉ. सुनील कुमार
बिहारशरीफ विधानसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी एवं वर्तमान विधायक और मंत्री डॉ. सुनील कुमार चुनावी मैदान में सिक्सर लगाने के लिये बेताब है, जबकि उनसे लोहा लेने के लिये कांग्रेस ने यहां नये खिलाड़ी उमैद खान को उनके सामने लाकर खड़ा कर दिया है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के शिव कुमार यादव ने यहां से उम्मीदवार हैं, जो कांग्रेस प्रत्याशी के लिये मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं।भाजपा के डाक्टर सुनील कुमार ने फरवरी 2005, अक्टूबर 2005, 2010, 2015 और 2020 में जीत हासिल की है। वर्ष 2020 के चुनव में डॅा. सुनील ने राजद के सुनील कुमार को मात दी थी। पूर्व विधायक नौशादुन नवी उर्फ पप्पू खान की पत्नी निर्दलीय उम्मीदवार आफरीन सुलताना तीसरे नंबर पर रही थी। बिहारशरीफ में 10 उम्मीदवार चुनावी मैदान में जोर आजमां रहे हैं।
राजगीर (सुरक्षित) विधानसभा क्षेत्र से हरियाणा के पूर्व राज्यपाल सत्यदेव नारायण आर्य के पुत्र और जदयू विधायक कौशल किशोर और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी लेनिनवादी (भाकपा माले) उम्मीदवार विश्वनाथ चौधरी के बीच सीधी टक्कर देखी जा रही है। वर्ष 2015 में जदयू के श्रवण कुमार ने भाजपा के आर्य को 5390 मतों से शिकस्त दी थी। वर्ष 2020 के चुनाव में आर्या वर्ष 1977, 1980, 1985, 1990, 1995,2000, 2005 फरवरी और अक्टूबर 2005 ,2010 में इस सीट से जीत हासिल की है। वर्ष 2020 के चुनाव में जदयू के श्री किशोर ने कांग्रेस के रवि ज्योति कुमार को पराजित किया था। राजगीर में सात उम्मीदवार चुनावी दंगल में ताल ठोक रहे हैं।
अस्थावां विधानसभा क्षेत्र से सियासी पिच पर पांच का दम दिखा चुके जदयू प्रत्याशी जितेन्द्र कुमार सिक्सर लगाने के लिये बेताब हैं। राजद ने यहां रवि रंजन कुमार को उम्मीदवार बनाया है। वहीं प्रशांत किशोर की पार्टी (जनसुराज) ने कभी नीतीश कुमार के बेहद करीबी रहे जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष (अब जनसुराज में शामिल )रामचंद्र प्रसाद सिंह (आर.सी.पी सिंह) की बेटी लता सिंह को मैदान में उतारा है।
चुनावी दंगल में उतरी लता सिंह यहां मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में लगी हुयी हैं।जदयू के श्री कुमार ने फरवरी 2005, अक्टूबर 2005, 2010 ,2015 और 2020 में जीत हासिल की है। वर्ष 2020 के चुनाव में जदयू के श्री कुमार ने राजद के अनिल कुमार को हराया था।अस्थांवा विधानसभा सीट से कुल सात प्रत्याशी चुनावी अखाड़े में ताल ठोक रहे हैं।
इस्लामपुर विधानसभा क्षेत्र से जदयू ने पूर्व विधायक राजीव रंजन सिंह के पुत्र रूहेल रंजन को चुनावी अखाड़े में उतारा है, जहां उनका मुकाबला पूर्व विधायक कृष्ण बल्लभ प्रसाद सिंह के पुत्र और वर्तमान राजद विधायक राकेश कुमार रोशन से है। कृष्ण बल्लभ प्रसाद यहां से 1977, 1990 और 1995 में जीत हासिल कर चुके हैं।पिछले कुछ दशकों में जदयू ने यहां मजबूत पकड़ बनाई। अब तक जदयू यहां पांच बार जीत दर्ज कर चुकी हैं। वर्ष 2020 में जदयू का किला ढ़ह गया।
वर्ष 2020 के चुनव में इस्लामपुर सीट पर बड़ा उलटफेर हुआ। पहली बार राजद ने यहां जीत दर्ज की। राजद उम्मीदवार राकेश रौशन ने जदयू के चंद्रसेन प्रसाद को मात देकर इस सीट पर कब्जा जमाया था।इस्लामपुर की सीट पर इस बार मुकाबला दिलचस्प रहने वाला है। यह देखना होगा कि क्या 2020 की तरह फिर से राजद अपनी पकड़ बनाए रखती है या जदयू अपना पुराना गढ़ वापस हासिल कर पाती है। इस सीट पर 13 उम्मीदवार हैं।
हिलसा विधानसभा क्षेत्र से राजद ने अत्रि मुनि उर्फ शक्ति सिंह यादव को चुनावी दंगल में उतारा है। वहीं जदयू ने यहां विधायक कृष्ण मुरारी शरण को प्रत्याशी बनाया है। वर्ष 2020 के चुनव में सबसे नजदीकी मुकाबला हिलसा विधानसभा क्षेत्र में हुआ था, जहां जदयू के कृष्ण मुरारीशरण ने राजद के अत्री मुनि उर्फ शक्ति सिंह यादव को मात्र 12 वोट के अंतर से पराजित किया था।
इस बर भी जदयू और राजद के प्रत्याशी आमने-सामने हैं।देखना दिलचस्प होगा कि इस बार यहां कौन बाजी मारता है। इस सीट पर 10 प्रत्याशी चुनावी रणभूमि में किस्मत आजमां रहे हैं। वर्ष 2025 के विधानसभा चुनाव में कांटे की टक्कर के आसार हैं। राजग और महागठबंधन दोनों के लिये यह सीट प्रतिष्ठा का विषय है। राजद यहां 2020 की हार का बदला लेने में जुटी है,वहीं जदयू के पास इस सीट को बरकरार रखने की चुनौती है।
नालंदा जितना ऐतिहासिक रूप से वैभवशाली रहा है, उतना ही राजनीतिक रूप से समृद्ध भी है। नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालय प्राचीन काल मे दुनिया भर में मशहूर थे। बिहार के नालंदा में स्थित इस विश्वविद्यालय में आठवीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी के बीच दुनिया के कई देशों से छात्र पढ़ने आते थे।उनदिनो कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फ्रांस और तुर्की से छात्र इस विश्वविद्यालय आते थे।ऐसा कहा जाता है कि यहां पर 10,000 छात्रों के पठन-पाठन की व्यवस्था थी।
इस विश्वविद्यालय में 2,000 शिक्षक थे।खंडहर में तब्दील हो गये इस विश्वविद्यालय के पुनरोद्धार की कोशिश चल रही है। प्राचीन काल में वृहत अखंड भारत के 16 जनपदों में सबसे शक्तिशाली मगध साम्राज्य की राजधानी राजगृह नगरी (राजगीर) थी। कहा जाता है कि यह साम्राज्य पूर्वी भारत से लेकर पश्चिम तक और उतरी भारत तथा काबुल, बलूचिस्तान, गांधार तक फैला था।
यह क्षेत्र चन्द्रगुप्त मौर्य की मातृभूमि तो राजनीति एवं अर्थशास्त्रत्त् के ज्ञाता चाणक्य की कर्मभूमि रही है। पांच चट्टानी पहाड़ियों से घिरा राजगीर पवित्र यज्ञ भूमि तथा जैन तीर्थकर महावीर और भगवान बुद्ध की साधना भूमि भी रहा है। राजगीर में 22 एकड़ जमीन में बना पांडु पोखर महाभारत कालीन बताया जाता है। पावापुरी जल मंदिर यहां है, जिसके बारे में कहा जाता है कि भगवान महावीर को यहीं मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।
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