36 साल तक पेट में छिपे रहे जुड़वा भ्रूण, डॉक्टर भी रह गए हैरान

Jul 13, 2025 - 11:44
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36 साल तक पेट में छिपे रहे जुड़वा भ्रूण, डॉक्टर भी रह गए हैरान

नई दिल्ली 
चिकित्सा विज्ञान में कभी-कभी ऐसे चौंकाने वाले मामले सामने आते हैं जो डॉक्टरों को भी सोचने पर मजबूर कर देते हैं। ऐसा ही एक दुर्लभ और हैरान करने वाला मामला नागपुर के संजू भगत नामक व्यक्ति से जुड़ा है, जो 36 साल तक अपने पेट में एक अधूरे जुड़वा भ्रूण के साथ जीवित रहा। यह मेडिकल स्थिति 'फीटस इन फीटू' (Fetus in Fetu) कहलाती है।

बचपन से पेट दिखता था फूला हुआ
संजू भगत का पेट बचपन से ही सामान्य बच्चों की तुलना में कुछ ज्यादा फूला हुआ था। परिवार वालों ने इसे साधारण मोटापा समझ कर नजरअंदाज कर दिया। लेकिन जैसे-जैसे संजू की उम्र बढ़ती गई, उनका पेट असामान्य रूप से बढ़ता गया। स्थिति इतनी अजीब हो गई कि लोग उन्हें मजाक में 'प्रेग्नेंट आदमी' कहकर बुलाने लगे।
 
1999 में बिगड़ी तबीयत, पहुंचना पड़ा अस्पताल
करीब 1999 के आसपास, संजू की तबीयत अचानक बिगड़ने लगी। उनका बढ़ता हुआ पेट डायाफ्राम पर दबाव डालने लगा, जिससे उन्हें सांस लेने में परेशानी होने लगी। जब स्थिति और भी ज्यादा गंभीर हुई, तो उन्हें मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया।
 
ऑपरेशन में निकला इंसानी भ्रूण, डॉक्टर रह गए दंग
अस्पताल में डॉक्टरों को शुरू में लगा कि संजू के पेट में कोई बड़ा ट्यूमर है। डॉक्टर अजय मेहता और उनकी टीम ने ऑपरेशन का फैसला किया। लेकिन जैसे ही उन्होंने सर्जरी शुरू की, नजारा देखकर सब हैरान रह गए। पेट में ट्यूमर नहीं, बल्कि एक अधूरा मानव भ्रूण मौजूद था। डॉक्टरों को ऑपरेशन के दौरान हड्डियां, बाल, जबड़ा और अन्य अंग दिखाई दिए। यह सब देखकर मेडिकल टीम भी हैरान रह गई।

क्या होता है फीटस इन फीटू?
'Fetus in Fetu' एक दुर्लभ जन्मजात स्थिति है, जिसमें गर्भ के दौरान एक जुड़वा भ्रूण पूरी तरह विकसित हो जाता है, जबकि दूसरा भ्रूण अधूरा रह जाता है और पहले भ्रूण के शरीर के अंदर ही विकसित होता रहता है। यह अधूरा भ्रूण अक्सर पेट या शरीर के किसी हिस्से में पाया जाता है और विकसित भ्रूण के शरीर से ही रक्त आपूर्ति प्राप्त करता है। हालांकि, इसका अपना मस्तिष्क, दिल या अन्य महत्वपूर्ण अंग पूरी तरह विकसित नहीं होते।

सफल ऑपरेशन के बाद मिली राहत
संजू भगत का यह मामला पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गया। सर्जरी के बाद उनका पेट सामान्य हुआ और उन्हें राहत मिली। डॉक्टरों का कहना है कि यह एक बेहद दुर्लभ और चिकित्सा विज्ञान के लिए अध्ययन योग्य केस था।

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