तानाशाही के बीच चमकी मारिया की लोकतंत्र की लौ, नोबेल शांति पुरस्कार की सच्ची कहानी

कराकास
आर्कटिक से आने वाली नॉर्वे की सर्द हवाओं के बीच नॉर्वेजियन नोबेल समिति की घोषणा ने दुनिया भर में एक नई उम्मीद की किरण जलाई है। वेनेजुएला की विपक्षी नेता को 2025 का नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया है। नोबेल कमिटी के चेयरमैन जॉर्गेन वाटने फ्राइडनेस ने मंच पर खड़े होकर कहा, "यह पुरस्कार एक ऐसी महिला को जाता है जो बढ़ते हुए अंधेरे में लोकतंत्र की लौ जलाए रखती है।" और फिर नाम लिया गया- मारिया कोरिना माचाडो। वेनेजुएला की यह बेटी, जो तानाशाही के साए में छिपी हुई थी, वह 2025 के नोबेल शांति पुरस्कार की विजेता बन चुकी है। लेकिन यह सिर्फ एक सम्मान नहीं है; यह उन लाखों वेनेजुएलन दिलों की धड़कन है, जो दशकों से दम तोड़ रही थीं। यह पुरस्कार उन्हें वेनेजुएला के लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों को बढ़ावा देने के उनके अथक प्रयासों और तानाशाही से लोकतंत्र की ओर न्यायपूर्ण एवं शांतिपूर्ण संक्रमण के संघर्ष के लिए दिया गया।
'लोकतंत्र के औजार ही शांति के औजार हैं'
मारिया कोरिना माचाडो का नाम सुनते ही आंखों के सामने एक तस्वीर उभरती है- एक महिला, जिसके कंधों पर वेनेज़ुएला का पूरा बोझ लदा है, फिर भी उसकी मुस्कान में उम्मीद की किरण चमकती है। 1967 में काराकास की गलियों में जन्मीं मारिया, एक धनी इंजीनियर और व्यवसायी परिवार की बेटी थीं। लेकिन भाग्य ने उन्हें राजनीति के मैदान में धकेल दिया जहां साल 2000 से ह्यूगो चावेज की तानाशाही ने लोकतंत्र को कुचलना शुरू कर दिया था।
2010 में लोकसभा के लिए चुनी गईं मारिया ने रिकॉर्ड वोटों से जीत हासिल की, लेकिन 2014 में शावेज के उत्तराधिकारी निकोलास मादुरो के शासन ने उन्हें पद से हटा दिया। फिर भी, वे रुकीं नहीं। उन्होंने वेंते वेनेज़ुएला पार्टी की स्थापना की, 2017 में सोय वेनेज़ुएला गठबंधन बनाया। यह एक ऐसा धागा था जो विपक्षी दलों को एक सूत्र में बांधता था। इसके बाद का सफर और कठिन हो गया- उन्हें राजनीतिक प्रतिबंध लगाए गए, यात्रा पर रोक लगा दी गई और बार-बार गिरफ्तारी की धमकियां मिलीं। नोबेल कमिटी ने कहा, "मारिया ने दिखाया कि लोकतंत्र के औजार ही शांति के औजार हैं।" बीबीसी की '100 वुमन' सूची (2018) और टाइम मैगजीन की 'वर्ल्ड्स मोस्ट इन्फ्लुएंशियल पीपल' (2025) में शामिल होना उनके वैश्विक प्रभाव को दर्शाता है।
पुरस्कार की वजह?
सरल शब्दों में कहें तो यह वेनेज़ुएला के लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए उनके अथक संघर्ष का सम्मान है। 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में धांधली के बाद, मारिया ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को जगाया। उन्होंने स्वतंत्र चुनावों की मांग की, मानवाधिकार उल्लंघनों पर रोशनी डाली। अमेरिकी सीनेटर रिक स्कॉट और मार्को रुबियो जैसे नेताओं ने अगस्त 2024 में नोबेल कमिटी को पत्र लिखा, जिसमें कहा, "उनका साहस और निस्वार्थ नेतृत्व शांति और लोकतंत्र की खोज में महत्वपूर्ण रहा है।" लेकिन वजह सिर्फ राजनीति नहीं; यह शांति की वो लड़ाई है जो तानाशाही से लोकतंत्र की ओर शांतिपूर्ण संक्रमण की मांग करती है। वेनेज़ुएला, जहां 25 सालों से चावेज-मादुरो रेजीम ने अर्थव्यवस्था को चूर-चूर कर दिया, लाखों को भुखमरी की कगार पर ला खड़ा किया, वहां मारिया की आवाज ने लोगों को एकजुट किया। नोबेल कमिटी ने जोर दिया, "लोकतंत्र- मतदान का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही देशों के भीतर और बीच शांति की नींव है।" मारिया का संघर्ष वैश्विक संकट को भी दर्शाता है, जहां लोकतंत्र पीछे हट रहा है।
मारिया की जीत का प्रतीक
अब बात उस खास किस्से की जो मारिया की जीत का प्रतीक बन गया- एक ऐसा पल जो आंसू और साहस की मिश्रित कहानी है। जनवरी 2025 की ठंडी सुबह, काराकास के चाको इलाके में एक रैली हो रही थी। तीन महीने से छिपी हुई मारिया पहली बार सार्वजनिक रूप से सामने आईं। भीड़ में सैकड़ों लोग थे- भूखे, डरे हुए, लेकिन आशा से भरे। मारिया मंच पर चढ़ीं, उनकी आवाज कांप रही थी, लेकिन शब्द मजबूत थे: "हम डरेंगे नहीं। यह हमारा देश है, हमारी आजादी है।"
रैली खत्म होते ही, मादुरो रेजीम की ताकतें दौड़ पड़ीं। गोलियां चलीं, आंसू गैस के धमाके हुए। मारिया को गिरफ्तार करने की कोशिश हुई- वे उन्हें घेर चुके थे। लेकिन तब कुछ हुआ जो इतिहास बन गया। भीड़ ने एक दीवार बनाई। साधारण लोग- माताएं, छात्र, मजदूरों ने अपनी जान जोखिम में डालकर मारिया को बचाया। एक बुजुर्ग महिला ने चिल्लाया, "वह हमारी उम्मीद है!" जबकि युवा छिपे हुए रास्ते से मारिया को सुरक्षित निकाल ले गए। यह गिरफ्तारी का प्रयास विफल रहा, लेकिन इसने दुनिया को दिखा दिया कि मारिया अकेली नहीं हैं; वे लाखों की आवाज हैं।
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